आम चुनाव, 2024ः राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच संत कबीर का संदेश
दया शंकर चौधरी
दुनिया के सबसे बडे़ लोकतंत्र के रूप में भारत आम चुनाव यानी लोक सभा चुनाव की दहलीज़ पर खड़ा है। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के रूप में सियासी सरगर्मी भी उफान पर है। अपने-अपने हिसाब से हर राजनीतिक दल अपनी रणनीति को राज्यवार आख़िरी जामा पहनाने में जुटा है। इन सबके बीच जिस चीज़ की कमी खटक रही है, वो है चुनाव को लेकर वास्तविक मुद्दे की। सैद्धांतिक तौर से आम चुनाव अलग-अलग राजनीतिक दलों के बीच जनता की ज़रूरतों से जुड़े वास्तविक मुद्दों की लड़ाई पर केंद्रित होना चाहिए। हालाँकि जो कुछ हो रहा है, इसके एकदम विपरीत है।
आम चुनाव पर हावी है राजनीतिक दलों के निजी हित
आम चुनाव का वक़्त जैसे-जैसे नज़दीक आ रहा है, जनता की ज़रूरतों से जुड़े वास्तविक मुद्दों की जगह पर राजनीतिक दलों के निजी हित से पैदा हुए सियासी मुद्दे हावी होते जा रहे हैं। तमाम दलों और उनके नेताओं की ओर से सिर्फ़ एक-दूसरे पर ही बयानों से वार किया जा रहा है। जनता क्या चाहती है, आम जनता के सामने वास्तविक समस्या क्या है, चुनाव को लेकर जनता के मन में क्या चल रहा है...! आरोप-प्रत्यारोप की सियासी रस्साकशी में ये तमाम सवाल नेपथ्य में चले जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि राजनीतिक और मीडिया के व्यापक विमर्श में इन सवालों की प्रासंगिकता की गुंजाइश ही ख़त्म होती दिख रही है।
आम चुनाव और सियासी लड़ाई का रुख़
ऐसे में सवाल उठता है कि चुनाव हो किसके लिए रहा है, चुनाव का मकसद क्या सिर्फ़ सत्ता हासिल करना रह गया है। इस बार के लोक सभा चुनाव में राजनीतिक तौर से तीन पक्ष हैं। पहला पक्ष बीजेपी की अगुवाई में एनडीए है। दूसरा पक्ष कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों का गठबंधन 'इंडिया (I.N.D.I.A)' है। इन दोनों के अलावा तीसरा भी पक्ष है, जो न तो एनडीए का हिस्सा है और न ही विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' का। इस तीसरे पक्ष में मुख्य तौर से मायावती की बहुजन समाज पार्टी, नवीन पटनायक की बीजू जनता दल, वाईएसआर जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस और के. चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति है।
मौटे तौर से इन तीन पक्षों के बीच में ही केंद्र की सत्ता से जुड़ी सियासी लड़ाई लड़ी जा रही है। इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए की नज़र लगातार तीसरे कार्यकाल पर है। वहीं कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों के गठबंधन 'इंडिया' का मुख्य ज़ोर, बीजेपी के विजय रथ को रोककर केंद्र की सत्ता के करीब पहुँचने पर है। इनके अलावा तीसरे पक्ष में शामिल दलों का मुख्य फोकस अपने-अपने प्रभाव वाले राज्यों में अपना दबदबा या जनाधार बनाने रखने पर है।
समीकरणों को साधने पर ही है मुख्य ज़ोर
बीजेपी की अगुवाई में एनडीए और विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' दोनों ही पक्षों का मुख्य ज़ोर राज्यवार सियासी समीकरणों को किसी भी तरह से अपने नज़रिये से साधने पर है। पिछले कुछ दिनों में बीजेपी की ओर से लगातार कोशिश की गयी कि विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' खे़मे से छोटे-छोटे दलों को अपने पाले में लाया जाए। बिहार में नीतीश कुमार और उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी के रूप में बीजेपी को अपनी रणनीति में कामयाब भी मिली है।
इसके साथ ही जो दल विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' का हिस्सा नहीं थे, लेकिन विपक्ष में थे...उन दलों को भी धीरे-धीरे अपने पाले में लाने की बीजेपी की रणनीति को सफलता मिलनी शुरू हो गयी है। इसके तहत ही पंजाब में वर्षों तक पुराने साथी रहे शिरोमणि अकाली दल का बीजेपी से एक बार फिर से जुड़ना लगभग तय दिख रहा है। उसी तरह से आंध्र प्रदेश में भी एनडीए के हित में सियासी समीकरणों को साधने के लिए बीजेपी की नज़र तेलुगु देशम पार्टी के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और वाईएसआर कांग्रेस के जगन मोहन रेड्डी दोनों पर है। निकट भविष्य में ही पता चल जाएगा कि इन दोनों में से कौन बीजेपी के पाले में आते हैं।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के मायने
बीजेपी एनडीए का कुनबा बढ़ाने के लिए राजनीतिक तौर से किस तरह की जुगत अपना रही है, वो अलग चर्चा का विषय है। उस पर विपक्षी गठबंधन में तोड़-फोड़ करने के लिए हर तरह के हथकंडे का इस्तेमाल करने का भी आरोप लग रहा है। प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी जैसी केंद्रीय जाँच एजेंसियों का विपक्षी नेताओं के ख़िलाफ़ इस्तेमाल का आरोप, भारत रत्न जैसे देश के सर्वोच्च सम्मान का चुनावी लाभ के लिए राजनीतिक इस्तेमाल का आरोप, विपक्षी नेताओं को अपने पाले में लाने के लिए तरह-तरह का प्रलोभन देने का आरोप कांग्रेस समेत विपक्ष के कई नेता बीजेपी पर लगा रहे हैं। हालाँकि राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप को थोड़ी देर के लिए यदि दरकिनार कर दें, तो वास्तविकता यही है कि आम जनता के वास्तविक मुद्दों पर कम चर्चा की जा रही है।
19 अप्रैल से 7 चरणों में होगी वोटिंग, 4 जून को आएंगे नतीजे
निर्वाचन आयोग ने लोकसभा चुनाव 2024 के तारीखों का ऐलान कर दिया है। इस बार मतदान 7 चरणों में कराया जाएगा जबकि रिजल्ट 4 जून 2024 को घोषित किया जाएगा। चुनाव आयोग ने चार राज्यों की विधानसभा चुनाव कराए जाने का भी ऐलान किया है।
ऐसे में 543 सीटों के लिए 19 अप्रैल, 26 अप्रैल, 7 मई, 13 मई, 20 मई, 25 मई और एक जून को मतदान होगा। 19 अप्रैल को पहले चरण में 102 सीट, 26 अप्रैल को दूसरे चरण में 89 सीट, 7 मई को तीसरे चरण में 94 सीट, 13 मई को चौथे चरण में 96 सीट, 20 मई को पांचवें चरण में 49 सीट, 25 मई को छठे चरण में 57 सीट और एक जून को सातवें और आखिरी चरण में 57 सीटों की वोटिंग होगी।
- पहले चरण का चुनाव 19 अप्रैल को 21 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की 102 सीटों पर वोटिंग होगी।
- दूसरे चरण में 26 अप्रैल को 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 89 सीटों पर मतदान पर वोटिंग होगी।
- तीसरे चरण में 7 मई को 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 94 सीटों पर मतदान पर वोटिंग होगी।
- चौथा चरण में 13 मई को 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 96 सीटों पर मतदान पर वोटिंग होगी।
- पांचवें चरण में 20 मई को 8 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 49 सीटों पर मतदान पर वोटिंग होगी।
- छठवां चरण में 25 मई को 7 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 57 सीटों पर मतदान पर वोटिंग होगी।
- सातवें चरण में 1 जून को 8 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 57 सीटों पर मतदान पर वोटिंग होगी। 4 जून को चुनाव परिणाम का दिन है।
सांप्रदायिकता के स्पष्ट खिलाफ था संत कबीर का संदेश
अब आईये समझते हैं चुनाव परिणाम के साथ 4 जून को कबीर जयंती के दिन वर्तमान राजनैतिक प्रसंगों और संत कबीर के संदेश को...!
धर्म के कर्मकाण्ड और कपटता वाले रास्ते की पोल खोलकर कबीर ने जनसाधारण को धर्म की वह राह दिखाई, जिसमें सहनशीलता, प्रेम, समर्पण, सादगी, परोपकार तो खूब है, पर जिसमें ढोंग, अहंकार, भोग-विलास और अन्याय के लिए कोई जगह नहीं है। जब करोड़ों लोगों के श्रद्धेय किसी महापुरुष को बड़ी जन सभाओं में याद किया जाता है, तो यह उम्मीद की जाती है कि महापुरुष के मूल संदेश का पालन भी किया जाएगा।
इस वर्ष संत कबीर जयंती के अवसर पर उनके संदेश पर भी चर्चा की जानी चाहिए, जिसमें संत कबीर के अति महत्त्वपूर्ण सांप्रदायिकता विरोधी संदेश को समुचित महत्त्व नहीं दिया जा रहा। हालांकि यह रेखांकित करना आवश्यक है कि कबीर साहेब ने सांप्रदायिकता का, धर्म के नाम पर झगड़े करने-करवाने का बहुत स्पष्ट और सटीक विरोध किया था।
उन्होंने कहा था, हिंदू कहै मोंहि राम पिआरा, तुरूक कहै रहिमाना। आपस में दोउ लरि-लरि मूए, मरम न काहू जाना।
इन व्यर्थ के झगड़ों पर गहरा दुख प्रकट करने वाले संत कबीर ने यह भी बताया कि सब धर्मों का मूल संदेश एक ही है। ग्रन्थ पन्थ सब जगत के, बात बतावै तीन। राम हृदय मन में दया, तन सेवा में लीन।
एक अन्य जगह वे कहते हैं, काशी काबा एक है, एकै राम रहीम। मैदा इक पकवान बहु, बैठ कबीरा जीम। कृष्ण करीमा एक है, नाम धराया दोय। कहै कबीर दो नाम सुनि, मर्मि परो मति कोय।
दो टूक बात कहने वाले संत कबीर ने सदा कहा कि ईश्वर को पाने के लिये दूर-दूर के तीर्थों में जाने की जरूरत नहीं है, ज्योें नैनों में पूतली, त्यों मालिक घट मांय। मूर्ख लोग न जानिए, बाहर ढूंढन जांय। ज्यों तिल मांही तेल है, ज्यों चकमक में आग। तेरा मालिक तुझी में, जाग सके तो जाग।
नफरत की राह छोड़कर परस्पर प्रेम की राह अपनाने के लिए संत कबीर ने कहा: प्रेम प्रेम सब कोई कहै, प्रेम न चीन्हें कोय। जा मारग साहब मिले, प्रेम कहावे सोय। पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया ना कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढै़ सौ पंडित होय।
धर्म के नाम पर धन्धा करने वालों व संकीर्ण स्वार्थ साधने वालों को कबीर ने इन शब्दों में धिक्कारा: माला फेरत हाथ में, बात करत है और। ऐसे साधु सन्त को, तीन लोक न ठौर।
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर। कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।
धर्म के कर्मकाण्ड और कपटता वाले रास्ते की पोल खोलकर कबीर ने जनसाधारण को धर्म की वह राह दिखाई जिसमें सहनशीलता, प्रेम, समर्पण, सादगी, परोपकार तो खूब है, लेकिन जिसमें ढोंग, अहंकार, भोग-विलास और अन्याय के लिए कोई जगह नहीं है।
बिना किसी भेदभाव और डर के कबीर ने अपनी यह बात भी कही: कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सब की खैर। ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर। ना काहू से बैर, ज्ञान की अलख जगाये। भूला भटका जो होए, राह ताही बतलाये।
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