
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भी दिल्ली पर हमला — अब जड़ तक जाने का समय
डा. संतोष सिंह
राष्ट्रीय अध्यक्ष, विश्व वैदिक सनातन न्यास
7 मई 2025 को शुरू किया गया ऑपरेशन सिंदूर भारत की सैन्य और खुफिया क्षमता का शक्तिशाली संदेश था। इसका उद्देश्य सीमापार से संचालित आतंकवाद की जड़ों पर चोट करना था। लेकिन हालिया घटनाओं ने साफ दिखा दिया कि केवल एक सफल ऑपरेशन ही पर्याप्त नहीं—आतंकी तंत्र अब और गहराई में पैठ चुका है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को दहलाने की कोशिश करने वाले आतंकियों ने यह साबित कर दिया कि वे न केवल सीमापार पनाह पा रहे हैं, बल्कि भीतर से भी सहयोग प्राप्त कर रहे हैं। दिल्ली-एनसीआर में विस्फोटक सामग्री और बम बनाने के सामान की बरामदगी, तथा कुछ आरोपियों की गिरफ्तारी से संकेत मिला कि साजिशें हमारे ही बीच रची जा रही थीं।
यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। अगर हम केवल स्थानीय अपराधियों को पकड़कर संतुष्ट हो जाएँ, तो असली रणनीतिक और कूटनीतिक स्रोत खुले रह जाएंगे। सरकार ने साफ कहा है कि अब ऐसे हमलों को “युद्ध के कार्य” के रूप में देखा जाएगा—और जिनके पीछे साजिश है, उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जवाबदेह ठहराया जाएगा। यह रुख समय की मांग भी है, क्योंकि आतंकवादी नेटवर्क किसी एक देश की सीमाओं तक सीमित नहीं रहते।
केवल जवाबी कार्रवाई नहीं, स्थायी रणनीति चाहिए
सुरक्षा विश्लेषण यह दर्शाते हैं कि हमें अब बहुआयामी (multi-dimensional) रणनीति अपनानी होगी। सिर्फ सैन्य दबाव या प्रतिशोधी कार्रवाई अल्पकालिक राहत दे सकती है; असली चुनौती आतंकवाद की वित्तीय, प्रशिक्षण और लॉजिस्टिक जड़ों को खत्म करने की है।
ऑपरेशन सिंदूर जैसे कदम निर्णायक मोड़ ला सकते हैं, परंतु उन्हें सतत नीतिगत, कूटनीतिक और आर्थिक समर्थन की आवश्यकता रहती है। यह समय है जब भारत को आतंकी तंत्र के हर पहलू पर समन्वित रणनीति बनानी होगी।
अगले कदम क्या हों?
खुफिया समन्वय तेज करें — राज्यों, केंद्र और अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के बीच रियल-टाइम सूचनाओं का आदान-प्रदान अनिवार्य बनाएं। आतंकियों के वित्त और संचार नेटवर्क पर विशेष निगरानी रखी जाए।
सीमापार पनाहगाहों पर बहुआयामी दबाव — सैन्य क्षमता दिखाने के साथ-साथ कूटनीतिक, आर्थिक और साइबर माध्यमों से भी आतंकियों के संरक्षक तंत्र को कमजोर किया जाए।
स्थानीय जड़ों पर प्रहार — आतंकी नेटवर्क के भीतर छिपे स्थानीय सहयोगियों, लॉजिस्टिक सहायकों और भटके युवाओं पर सख्त कानूनी कार्रवाई हो। समाज में नफरत फैलाने वालों पर वैधानिक कदम उठाए जाएँ।
समाजिक जागरूकता — शिक्षा, संवाद और सामुदायिक कार्यक्रमों से कट्टरपंथ की विचारधारा को कमजोर करना जरूरी है। आतंकवाद की हार केवल हथियारों से नहीं, विचारों से भी होगी।
जवाबदेही और पारदर्शिता — जनता को भरोसा चाहिए। सफलता के साथ-साथ असफलताओं का भी ईमानदार मूल्यांकन सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत बनाएगा।
सामूहिक जिम्मेदारी का समय
हमारा लक्ष्य केवल हर हमले को रोकना नहीं, बल्कि उस ढांचे को तोड़ना होना चाहिए जो बार-बार नए हमलावर पैदा करता है। यह केवल सुरक्षा बलों की लड़ाई नहीं है; समाज, सरकार, कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय समुदाय—सभी को इसमें एकजुट होकर योगदान देना होगा।
अगर हम केवल तात्कालिक सफलता से संतुष्ट हो जाएँ, तो आतंकवाद फिर लौटेगा—और अगली बार उसकी कीमत कहीं अधिक भारी होगी। इसलिए जरूरी है कि हम कार्रवाई करते समय संवेदनशीलता, संवैधानिकता और मानवाधिकारों का पूरा पालन करें, किंतु दृढ़ता से उन ताकतों की जड़ें भी खोदें जो देश को अस्थिर करने की साजिश रचती हैं।
जनता की सुरक्षा सर्वोपरि है। अब हमारी नीति, हमारी कार्रवाई और हमारी आवाज एक ही दिशा में होनी चाहिए—
"आतंक का हर स्रोत नष्ट करना"।





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